अब औलाद नहीं हड़प सकेगी प्रॉपर्टी! 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने दिया सबसे बड़ा फैसला माता-पिता की सुरक्षा के लिए | Supreme Court Decision

Supreme Court Decision – 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला सुनाया है जिसने देशभर के माता-पिता को बड़ी राहत दी है। अक्सर देखा गया है कि बुजुर्ग माता-पिता अपने जीवनभर की कमाई से जो संपत्ति बनाते हैं, उसे अपने बच्चों के नाम कर देते हैं — यह सोचकर कि बुढ़ापे में वही उनका सहारा बनेंगे। लेकिन कई बार वही औलाद बाद में उन्हें घर से निकालने लगती है, उनका शोषण करती है या देखभाल से मुंह मोड़ लेती है। ऐसे ही मामलों को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अब एक ऐसा आदेश दिया है जो माता-पिता की संपत्ति पर औलाद का एकतरफा अधिकार खत्म करता है। अब माता-पिता अपनी इच्छा से संपत्ति को वापस ले सकते हैं अगर औलाद उनका ख्याल नहीं रखती।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला – माता-पिता को मिली कानूनी ढाल

सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि अगर कोई बुजुर्ग व्यक्ति अपनी संपत्ति अपने बच्चों को गिफ्ट करता है, और बाद में वे बच्चे उनकी देखभाल करने से इनकार कर देते हैं या उन्हें प्रताड़ित करते हैं, तो माता-पिता उस संपत्ति को वापस लेने का कानूनी अधिकार रखेंगे।

फैसले की मुख्य बातें:

  • माता-पिता द्वारा दी गई संपत्ति बिना देखभाल के वापस ली जा सकती है
  • संपत्ति गिफ्ट डीड भी निरस्त की जा सकती है अगर देखभाल नहीं की जा रही
  • ‘Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007’ को आधार माना गया है
  • अदालत ने साफ कहा – देखभाल नहीं तो संपत्ति भी नहीं

किस मामले पर आया यह ऐतिहासिक फैसला?

यह फैसला उस केस पर आधारित था जिसमें एक बुजुर्ग दंपती ने अपने बेटे को दिल्ली स्थित मकान गिफ्ट किया था। बेटे ने गिफ्ट डीड के बाद अपने माता-पिता को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया और उनकी देखभाल करने से साफ इनकार कर दिया। इस पर बुजुर्ग दंपती ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

दिल्ली हाई कोर्ट ने गिफ्ट डीड रद्द करने से इनकार कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए साफ कहा कि यह डीड रद्द की जा सकती है क्योंकि बेटे ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई।

अब माता-पिता क्या कर सकते हैं?

अगर किसी बुजुर्ग को लगता है कि उनकी संपत्ति का गलत इस्तेमाल हो रहा है, या बच्चे उनका ध्यान नहीं रख रहे, तो अब वे निम्नलिखित कदम उठा सकते हैं:

  • अपने जिले के SDM (Sub-Divisional Magistrate) के पास शिकायत दर्ज करा सकते हैं
  • ‘वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2007’ के तहत कार्रवाई की मांग कर सकते हैं
  • गिफ्ट डीड को निरस्त कराने की अर्जी लगा सकते हैं
  • कोर्ट के जरिए संपत्ति वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं

असली ज़िंदगी की कहानियाँ जो इस फैसले को सही ठहराती हैं

मामला 1: जयपुर की सुधा देवी का दर्द

सुधा देवी ने अपने इकलौते बेटे को अपनी पुश्तैनी जमीन उसके नाम कर दी थी, यह सोचकर कि वह उनका आख़िरी समय में सहारा बनेगा। लेकिन जमीन मिलते ही बेटे ने सुधा देवी को अलग कमरे में बंद करके रख दिया, उनकी देखभाल तक नहीं करता था। जब सुधा देवी ने कोर्ट का रुख किया, तब जाकर उन्हें राहत मिली।

मामला 2: कानपुर के वकील साहब की मिसाल

70 साल के रिटायर्ड वकील श्री अग्रवाल ने अपनी तीन मंजिला कोठी बेटे को ट्रांसफर कर दी थी। लेकिन कुछ सालों बाद बेटा और बहू ने उन्हें घर से निकाल दिया। इस फैसले ने उन्हें फिर से हक दिलाने की उम्मीद दी है।

वरिष्ठ नागरिकों के अधिकार – जानिए अपनी ताकत

अब बुजुर्गों के पास सिर्फ भावनात्मक सहारा नहीं, बल्कि कानूनी अधिकार भी हैं:

  • ‘Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007’ के तहत अपने बच्चों से देखभाल की मांग की जा सकती है
  • संपत्ति अगर ‘वचन’ या देखभाल की शर्त पर दी गई है, तो उसे वापस लिया जा सकता है
  • कानूनी सहायता और मुफ्त वकील की सुविधा भी दी जा सकती है ज़रूरतमंद बुजुर्गों को

बच्चों को भी चेतावनी – संपत्ति लेने से पहले सोचें

यह फैसला सिर्फ माता-पिता की सुरक्षा नहीं, बल्कि बच्चों को भी चेतावनी है कि अगर वे संपत्ति लेना चाहते हैं, तो उन्हें जिम्मेदारी भी निभानी होगी। कोर्ट का साफ संदेश है – अगर देखभाल नहीं कर सकते, तो संपत्ति की उम्मीद भी मत रखो।

मेरी नानी का अनुभव – भावनात्मक कहानी

मेरी अपनी नानी ने भी अपने छोटे बेटे को एक प्लॉट ट्रांसफर किया था, इस भरोसे पर कि वह उनका सहारा बनेगा। लेकिन वह बेटा धीरे-धीरे अलग होता गया, उनकी तबीयत खराब होने पर भी कभी नहीं आया। इस फैसले ने अब मेरे घर में चर्चा छेड़ दी है कि संपत्ति देने से पहले पक्की शर्तें तय करनी जरूरी हैं।

बुजुर्गों के लिए कुछ जरूरी सलाह

  • कभी भी बिना शर्तों के कोई संपत्ति ट्रांसफर न करें
  • अगर गिफ्ट डीड करनी ही है, तो उसमें देखभाल की शर्त लिखवाएं
  • संपत्ति ट्रांसफर के बाद भी अपने नाम पर एक हिस्सा सुरक्षित रखें
  • बच्चों की नीयत पर भरोसा करें, पर अपनी सुरक्षा भी सुनिश्चित करें

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सिर्फ एक कानूनी आदेश नहीं, बल्कि एक सामाजिक संदेश है – बुजुर्गों का सम्मान और देखभाल सिर्फ नैतिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि कानूनी बाध्यता भी होनी चाहिए। यह फैसला उन सभी माता-पिताओं के लिए ढाल बनेगा जो अपने बच्चों के भरोसे थे लेकिन अकेले रह गए। अब न तो औलाद ज़बरदस्ती प्रॉपर्टी ले सकेगी, न ही माता-पिता असहाय रहेंगे।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

1. क्या गिफ्ट डीड को रद्द कराया जा सकता है?
हां, अगर गिफ्ट लेने वाला देखभाल नहीं करता तो अदालत में जाकर डीड को रद्द करवाया जा सकता है।

2. ‘Maintenance Act 2007’ के तहत क्या अधिकार हैं?
इस एक्ट के तहत माता-पिता अपने बच्चों से देखभाल और खर्च की मांग कर सकते हैं।

3. शिकायत कहाँ दर्ज करानी चाहिए?
अपने क्षेत्र के एसडीएम (SDM) कार्यालय में जाकर आवेदन दे सकते हैं।

4. क्या संपत्ति ट्रांसफर में देखभाल की शर्त जुड़ सकती है?
हां, आप गिफ्ट डीड में स्पष्ट तौर पर देखभाल की शर्त शामिल कर सकते हैं।

5. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का फायदा किसे मिलेगा?
सभी वरिष्ठ नागरिक जो अपनी संपत्ति देकर उपेक्षित हो गए हैं, उन्हें इससे कानूनी सहारा मिलेगा।

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